कोणार्क सूर्य मंदिर : इतिहास, कला, सांस्कृतिक एवं पौराणिक महत्व
कोणार्क सूर्य मंदिर
नमस्कार दोस्तों !
कोणार्क सूर्य मंदिर भारत के ओडिशा राज्य में स्थित एक अद्वितीय स्थापत्य कला है, जिसे भारतीय वास्तुकला और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में देखा जाता है। इस भव्य मंदिर निर्माण 13 वी शदि कलिंग के राजा गजपति लांगुला नरसिंह देव प्रथम द्वारा बनाया गया था। यह मंदिर सूर्य भगवान के लिए समर्पित है। अपने कलात्मक सौंदर्य के कारण यह मंदिर विश्व भर में प्रशिद्ध है। मंदिर की संरचना भगवान सूर्य के रथ के रूप में किया गया है। इसके ऊपर किये गए निपुण कारीगरी भारत का महान स्थापत्य कला का उदहारण है।
इतिहास और सांस्कृतिक महत्व :
कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण कलिंग राज्य (मुख्य तोर पर वर्त्तमान का ओडिशा) के गंग वंश के राजा गजपति लांगूला नरसिंह देव प्रथम ने 1250 ई. में बनाया गया था। यह मंदिर पुरी (Puri) जगन्नाथ मंदिर से उत्तर-पूर्व की ओर 35 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। वर्णन है की कोणार्क मंदिर चंद्रभागा नदी के किनारे बानी थी। मंदिर की दिशा और संरचना, सूर्य भगवान के प्रति लोगों की श्रद्धा को दर्शाती है। यह मंदिर ओडिशा की संस्कृति और शिल्पकला का एक महत्वपूर्ण भाग है, और भारतीय वास्तुकला की धरोहर में इसके एक खास स्थान है।
13 वी सताब्दी में बनाई गयी कोणार्क सूर्य मंदिर अपनी अनोखी रचना और वास्तुशिल्प के लिए जाना जाता है। सूर्य देव की पूजा के लिए बनाई गई इस मंदिर को सूर्य भगवान के रथ रूप में बनाया गया है। जिसमे बारह (12) विशाल काय पहिऐ जो वर्ष के 12 महीने को दर्शाती है और सात (7) घोड़े, जो सप्ताह के सात दिनों को दर्शाती है। यह पूरी संरचना पत्थर के ऊपर किया गया है, और मंदिर की हर एक दिवार, खम्बे और छत पर की गयी कलाकृति भारतीय स्थापत्य कला की उत्कृष्ट्ता को दर्शाता है। लेकिन समय के साथ यह (गर्भगृह) नष्ट हो चूका है।
सूर्य भगवान का रथ :
कोणार्क मंदिर की सबसे भिन्न विशेषता इसका रथ का आकर है, जिसमे सूर्य देव का रथ को पत्थरों में उकेरा गया है। रथ के विशाल पहियों में समय, गति, और ऊर्जा का प्रतीकात्मक चित्रण देखने को मिलता है। जिनकी कलाकृति इतनी उन्नत है की उन पर छाया पड़ने के साथ साथ सठिक समय का पता लगाया जा सकता है। यह रथ सूर्य देव के उन विभिन्न रूपों को दर्शाता है जो दिन में अलग-अलग समय पर अपने भक्तों को दिखाई देतें हैं।
शिल्पकला :
मंदिर की हर तरफ, दिवार और खम्बों पर किये गए उन्नत कारीगरी शिल्पचित्रों में भारतीय कला और संस्कृति की एक नायव दृश्य देखने मिलता है। मंदिर की इन सारे कलाकृतियों में देवताओं, अप्सराओं, नर्तकियों, जानवरों और मिथकी प्राणियों के साथ मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं का भी चित्रण किया गया है। यहाँ तक के छोटे से छोटे विवरणों में भी एक अद्भुत सौंदर्य संजीवता दिखाई देती है। नृत्य, संगीत, युद्ध, प्रेम, और प्रकृति के चित्रण को मंदिर के विभिन्न हिस्सों में बखूबी गया है
कोणार्क सूर्य मंदिर की संरचना न केवल कला की दृस्टि से, बल्कि विज्ञानं की दृष्टि से भी एक अद्वितीय संरचना है। यह मंदिर खगोल विज्ञान और गणित के प्रयोग का उदहारण है। मंदिर की रचना सूर्य के संचरण के अनुसार बनाई गई है , ताकि सूर्यदय का पहली किरण से लेकर सूर्यास्त तक सूर्य की किरणें सीधे मंदिर की गर्भगृह तक पहुंचे। पत्थरों पर की गई कलाकृति में समय का एकदम सटीक संकेत भी छुपा है, जिससे यह मन जाता है की उस समय के लोग समय मापन की तकनीक बनाने में भी निपुण थे। मंदिर की दिशा और सरचना खोगलीय सिद्धांत के अनुसार बनाई गई है। मंदिर का मुख्य द्वार सूर्य के उगने की दिशा में है, जिससे सूर्य की प्रथम किरण गर्भ गृह में पड़ती थी। कोणार्क मंदिर को 1984 में यूनेस्को विस्वा धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई थी।
पौराणिक कथा :
कोणार्क मंदिर से जुडी कई पौराणिक कथाएं सुनने को मिलते हैं, जो धार्मिक महत्व को और भी गहरा बनती है। कहा जाता है की राजा नरसिंह देव के पुत्र एक गंभीर रोग हुआ था, जिसे कोई भी वैदय ठीक नहीं कर पाए थे , और फिर राजा सूर्य देव की तपस्या किये थे और उनका पुत्र का स्वास्थ्य ठीक हुआ था। इसीलिए राजा ने सूर्य देव की पूजा के लिए मंदिर बनवाया था। और इसके बाद मंदिर सूर्य भगवान की महिमा का प्रतिक मन गया। एक अन्य कथा के अनुसार राजा नरसिंह देव इस मंदिर को सूर्य भगवान की पूजा करने के लिए बनाया था, ताकि वह (राजा) उनके कृपा से समृद्धि प्राप्त कर सकें।
कोणार्क सूर्य मंदिर भारतीत कला, संस्कृति और आस्था का प्रतिक है। यह मंदिर हमारे पूर्वजों के विज्ञानं, खोगलीय विद्या और स्थापत्य कला के ज्ञान को दर्शाता है। इस मंदिर की संरचना, कलाकृति खगोलीय महत्व भारतीय धरोहर को और भी समृद्ध बनाते हैं। कोणार्क सूर्य मंदिर न केवल भारत के लिए बल्कि पुरे विश्व के लिए एक अनमोल धरोहर है।
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