One Nation One Election: जानिए क्या है एक देश एक चुनाव का पूरा मामला विस्तार से...

 नमस्कार दोस्तों !

दोस्तों इस बिच एक देश एक चुनाव (One Nation, One Election ) को लेकर काफी चर्चा हो रहा है ऐसा कहा जा रहा है की भारत मैं अब तक के सबसे बड़े बदलाव होने जा रहा है। ऐसा इसीलिए क्यों की  कुछ दिन पहले यानि की 18 सितम्बर 2024 को मोदी सरकार केबिनेट से एक राष्ट्र एक चुनाव को लेकर मंजूरी मिल गयी है। 

तो आइये समझते हैं की क्या है एक देश एक चुनाव (One Nation, One Election) का पूरा मुद्दा और इसे क्यों देश में अबतक के सबसे बड़े बदलाबों में गिना जा रहा है। अगर आपको इस Topic को लेकर कोई भी संदेह रहता है या कोई बात लिखा है जो समझ मैं नहीं आ रहा है तो आप हमें comment मैं बता सकते हैं। हम आपको जल्द से जल्द उसके उत्तर देने की कोसिस करेंगे। 

One Nation One Election

चर्चा में क्यों है ?

साथियों पहले हम यह समझते हैं की यह मुद्दा इतनी चर्चा मैं क्यों है। हम आपको बतादे की यह जो ON-OE का मुद्दा है, वह आज का या एक साल से चली आ रही मुद्दा नहीं है बल्कि यह बात BJP (भारतीय जनता पार्टी) ने 2014, 2019, और 2024 के अपनी चुनावी घोषणापत्र में कहा है की हम एक देश एक चुनाव को समर्थन करते हैं और इसे देश में लागु करने की प्रक्रिया में हम आगे बढ़ेंगे। इसके बाद समय समय पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद ये बात को कहा है। उनका हमेशा से यह कहना है की हम सबको मिलकर इसपर सोचने की जरुरत है और इसे लेकर निजी या किसी पार्टी के स्वार्थ के बारे में न सोचकर देश के हित के बारे में सोचना चाहिए। 2014 के पहले से भी कईबार ये मुद्दा अलग अलग तरह से सामने आ चूका है। 

एक देश एक चुनाव (ON-OE) देश के लिए क्यों जरुरी है यह बताने के लिए BJP के तरफ से 2019 चुनाव के बाद से ही पार्टी के कुछ बरिष्ठ नेता के द्वारा कईसारे वेबिनार (webinar) किये गए हैं।  इसीलिए क्यों की उनका यह मानना है की इसके जरिये हम देश के शिक्षित वर्ग और आम लोगों तक यह बात पहुंचाए और समझाएं की यह (ON-OE) देश के लिए क्यों जरुरी है, और इससे देश को कितने फायदे हो सकते हैं, ताकि इसको लेकर लोगों के पास पूरी जानकरि हो और लोग इसके ऊपर अपना राय खुद बना सके। 

इसके अलावा 2024 लोकसभा लोकसभा चुनाव से पहले भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोबिंद के अध्यक्षता में एक कमिटी बनी थी। उस कमिटी ने यह सुझाब दिया था की एक देश चुनाव (ONOE) देश में लघु होना चाहिए। अब इस चीज को लेकर सरकार के तरफ से मंजूरी मिलगई है, इसीलिए अब पूरा दश में इसे लेकर चर्चा का बिसय बना हुआ है। 

तो आगे हम देखेंगे की क्या है कोविंद कमिटी का पूरा पूरा मामला और इससे BJP सरकार क्यों इतनी महत्व दे रही है। इसके होने से किसको क्या फायदा होगा और क्या नुकसान। 

भारत में चुनावी व्यवस्था 

भारत एक संप्रभु, समाजवादी, धर्म निरपेक्ष्य लोकतंत्रीय गणराज्य है। अगर हम भारत के चुनावी व्यवस्था की बात करें तो, 15 अगस्त 1947 के दिन हमें आजादी मिली थी उससे लगभग एक साल पहले 2 सितम्बर 1946 में भारत का एक अंतरिम सरकार (Interim Government) की स्थापना की गयी थी। बाद 15 अगस्त 1947 से यह पूरी तरह से भारत सरकार का हिस्सा बन गयी। 1949 में हमारा संबिधान लिखा गया और 26 January 1950 से इसे पुरे देश में लागु कर दिया गया। 1947 के बाद आजाद भारत का पहला चुनाव वर्ष 1951-1952 में हुई थी। उसके बाद 1952 से लेकर 1967 तक लोकसभा और लगभग सारे राज्य विधान सभाओं का निर्वाचन एक साथ कराए गए थे। 1967 के बाद से यह क्रम टूट गया और चुनाव अलग अलग समय पर होने लगा। 

भारत देश एक संसदीय व्यवस्था पर चलता है। हमारे संसद की बात करें तो संसद में दो सदन होते हैं, (1) लोकसभा, (2) राज्यसभा, इसमें लोकसभा का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से साधारण जनता के द्वारा किया जाता है, और लोकसभा में बहुमत के आधार पर प्रधानमंत्री को चुना जाता है। राज्यसभा का चुनाव अप्रत्यक्ष  रूप से किया जाता है। इसी सभी कारण लोकसभा को प्रथम सदन और राज्यसभा को द्वितीय सदन भी कहा जाता है। हमारे संबिधान में भी लोकसभा को राज्यसभा के तुलना में ज्यादा महत्व दिया गया है। 

लोकसभा और राज्य विधान सभा 

लोकसभा की सीटों की बात करें तो लोकसभा की अधिकतम (Maximum)  सीटें 552 ह, जिसमे 550 सीटों का सदस्य निर्बाचित होकर आते हैं और अनुच्छेद 331 के तहत 2 सीटें Anglo-Indian के लिए रिज़र्व रखा जाता है, जिनको राष्ट्रपति के द्वारा मनोनीत किया जाता है। साल 2020 में इसे समाप्त कर दिया गया। अब 548 सीटों में 5 सीटें POK (Pak Occupied Kashmir) के लिए रिज़र्व रखा जाता है। जिसके बाद 28 राज्यों को मिलाकर 530 सीटें और 8 केंद्र साशित प्रदेशों को मिलाकर 13 सीटें होती है। उसी तरह राज्य में विधान मंडल का दो सदन होता  हैं, (1)  विधानसभा, (2) विधान परिषद, यहांपर भी संसद की तरह विधान सभा का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से  किया जाता है और  विधान सभा में बहुमत के आधार पर मुख्यमंत्री का चयन किया जाता है। 

इस  सब के बाद स्थानीय निकाय या स्थानीय व्यवस्था को चलाने के लिए हमारे देश में ओरएक चुनाव किया जाता है जिसे हम पंचायती राज (पंचायत) और नगर पालिका के नाम से जानते हैं। ग्रामीण क्षेत्र के लिए पंचायत का चुनाव और सहरी क्षेत्र के लिए नगर पालिका  का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से होता है। तो इसमें हमे यह पता चलता है की देश में अलग अलग राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश में अलग अलग समय पर चुनाव होते रहते हैं। 

निति आयोग की 2017 में आयी Simultaneous Elections के ऊपर रिपोर्ट "Niti Ayog Report 2017" के अनुसार भारत में राजनितिक दल और सरकार अपने 5 बर्ष के कार्यकाल में कुछ विशेष बर्ष को छोड़कर बाकि समय में निरंतर चुनाव के मूड में रहतें हैं। इसको समझाने के लिए उन्होंने 2014 से लेकर 2016 तक के समय को दिखाया है। जैसे मार्च 2014 से लेकर मई 2014 तक के समय में लोकसभा का चुनाव चला था। उसके साथ ही अन्य चार राज्य - ओडिशा, आंध्र प्रदेश, अरुणांचल प्रदेश, और सिक्किम में लोकसभा और राज्य विधान सभा का चुनाव एक साथ हुआ था। इसके बाद सितम्बर 2014 से अक्टूबर 2014 में महाराष्ट्र और हरयाणा का चुनाव, अक्टूबर 2014 से लेकर दिसंबर 2014 में झारखंड और Jammu and Kashmir में चुनाव , January 2015 से February 2015 में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCT) दिल्ली में चुनाव, सितम्बर 2015 से November 2015 में बिहार का चुनाव, मार्च 2016 से मई 2016 में असम, केरला, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में चुनाव हुआ था। ऐसे लगातार चुनाव होने के कारन सरकारी अर्थ का मोटा व्यय (खर्च) तो होता ही है, साथ ही सरकारी व्यवस्था जैसे, सरकारी शिक्षकों को चुनावी अधिकारी के रूप में भेजा जाता है और सुरक्षाबलों को भी अपना काम छोड़ कर चुनावी प्रक्रिया में शामिल होना पड़ता है, उस समय ऐसे अनेक क्षेत्र में प्रभाव पड़ता है। इसके साथ सरकार विभिन्न विकास के कार्यों को स्थगित करता है या फिर टालता रहता है क्यों की अगले साल या कुछ महीने बाद दूसरी राज्य में चुनाव होने जा रहा है, अगर अब उस प्रस्ताब को लाया गया तो वहां के चुनाव में इसका असर पड़ सकता है। 

साथ ही कुछ विशेषज्ञ का मानना है की जब किसी भी देश में चुनाव का समय आता है तो लोगों को विभिन्न मुद्दों में भटकाने की कोसिस की जाती है। जैसे भारत में देखाजाए तो जातिबाद, ऊंच नीच, धर्म का विवाद, क्षेत्र का विवाद, ये सारे चुनाव के समय पर बहुत ज्यादा देखने को मिलता है। इसके कारण ही देश में कई सारे हिंसा, मारपीट, दंगा जैसे स्थिति का आरम्भ होता है और फिर चलता रहता है, इसका लोगों पर बहुत ज्यादा असर पड़ता है। तो अगर 5 साल में एक बार या दो बार चुनाव होने से ये भी कम हो सकता है। इस बिसय पर हमारे पूर्व प्रसिद्ध गीतिकार "राहत इन्दोरी" जी का एक प्रसिद्ध कबिता है -

"साहब सरहदों पर बहुत तनाव है क्या 
कुछ पता तो करो चुनाव है क्या"

One Nation One Election

कोविंद कमिटी का सुझाव 

सितम्बर 2023 में हमारे पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय कमिटी का गठन किया गया था, जिसका काम सिर्फ यह था की एक राष्ट्र एक चुनाव के ऊपर जाँच करना जैसे की, क्या भारत में एक राष्ट्र एक चुनाव संभव है, इसके फायदे और नुकसान क्या क्या है। 

स्वतंत्र भारत का पहला चुनाव साल 1951-52 में हुआ था, जिसके बाद 1952 से लेकर 1967 तक, यानि की 1952,1957,1962, और 1967 में लोकसभा और सभी राज्य का विधान सभा का चुनाव एक साथ कराया गया था। 1967 चुनाव के बाद कईबार लोकसभा और राज्यों की विधान सभा का भांग होने के कारण एक साथ होनेवाले चुनाव का क्रम टूट गया। 

सबस पहले साल 1982 में चुनाव आयोग के द्वारा एक साथ चुनाव कराने का विचार दिया गया था उसके बाद साल 1999 में विधि आयोग के द्वारा यह कहा गया था की भारत में एक साथ चुनाव होना चाहिए। 

भारत दुनिया का सबसे बड़ा गणतंत्र राष्ट्र है, यहाँ के चुनाव में भी सबसे ज्यादा पैसा खर्च होता है और साथ ही एक बड़ी प्रशासनिक साधन का उपयोग किया जाता है जो की दूसरे सरकारी काम के लिए बैध होता है, वे अपनी वास्तविक कामों को छोड़कर चुनाव प्रक्रिया में शामिल  होते हैं। 

अगर खर्च की बात करे तो, साधारणत: लोकसभा चुनाव में सरकार का लगभग 4000 करोड़ रुपय खर्च होता है। इसके साथ कुछ राज्य (चार राज्य) को छोड़कर बाकि राज्य के विधानसभा चुनाव अलग अलग समय पर होते रहते हैं, इसमें से कईबार विधान सभा समय से पहले भंग होने के कारण दुबारा से चुनाव कराए जाते हैं। इन सभी कारणों की वजह से लगातार चुनाव होते रहते हैं, पिछले कुछ दशकों से यह देखा जा रहा है की, हर साल 4 से 5 राज्य में चुनाव होता है। साथ ही  जिस राज्य में चुनाव होता है वहां चुनाव के समय 45 से 60 दिन तक आदर्श अचार संहिता लागु किया जाता है। जिसके कारण उस क्षेत्र से सम्बंधित किसी भी महत्वपूर्ण निर्णय पर और सारे सरकारी कामों पर रोक लग जाता है। इससे व्यापर में, प्रशासन के ऊपर, और उस राज्य के साथ देश के विकास में बहत ज्यादा प्रभाव पड़ता है। 

जैसे की हम  जानते हैं भारत के पुरे निर्वाचन प्रक्रिया को निर्वाचन आयोग के द्वारा संचालन किया जाता है, पर निर्वाचन आयोग सिर्फ लोकसभा और  विधान सभा चुनाव का संचालन और नियंत्रण करता है। बाकि स्थानीय निकाय जैसे पंचायत चुनाव और नगरपालिका चुनाव को राज्य निर्वाचन आयोग के द्वारा नियंत्रण किया जाता है। भारत का  संबिधान के अनुसार हर भारतीय नागरिक 18 वर्ष होने के बाद मतदान कर सकता है, तो मतदाता सूचि को हर साल निर्वाचन आयोग के द्वारा अपडेट (update) किया जाता है। भारत में एक आदमी को 18 साल होने के बाद उसके नाम पर दो बार मतदाता सूचि बनाया जाता है, एक बार निर्वाचन आयोग में और दूसरी बार राज्य निर्वाचन आयोग में। ऐसा हर भारतीय नागरिक के लिए किया जाता है। जो की एक बार में हो सकता है। एक ही काम को एक बार केंद्र निर्वाचन आयोग और फिर उसी काम को हर राज्य और केंद्र साशित प्रदेश अपने क्षेत्र के लोगों के लिए दुबारा से क्यों करे, इससे एक बार करने से सरकारी साधनों का भी बचत किया जा सकता है। 

इसके बिपक्ष में यह कहा जाता है की, प्रत्येक राज्य के अपने अलग प्रसंग अलग मुद्दें होते हैं, उसके साथ कई राज्य  के अंदर भी अलग क्षेत्र में अलग मुद्दे होतें हैं।अगर सारे चुनाव एक  साथ कराए गए तो क्षेत्रीय और राज्यों के के आगे राष्ट्रीय मुद्दे ज्यादा प्रभाबक होंगे। जिसे राष्ट्रीय राजनितिक दलों को क्षेत्रीय राजनितिक दलों से ज्यादा लाभ मिलेगा। 

कोविंद कमिटी का कहना है की एक राष्ट्र एक चुनाव देश में लागु करने के लिए संबिधान में संसोधन करने की आबस्यकता होगी जिसमे अनुच्छेद 83, 85, 172, 174, और 156 है। 

धन्यवाद !